Sunday, November 17, 2019

बंदा मिलने को क़रीबे हज़रते कादिर गया

बंदा मिलने को क़रीबे हज़रते कादिर गया

लमअए बातिन में गुमने जलवाए ज़ाहिर गया



तेरी मर्ज़ी पा गया सूरज फिरा उलटे क़दम

तेरी ऊँगली उठ गयी मह का कलेजा चिर गया



तेरी आमद थी कि बैतुल्लाह मुजरे को झुका

तेरी हैबत थी कि हर बुत थरथरा कर गिर गया



क्यूँ जनाबे बू हुरैरा था वो कैसा जामे शीर

जिस से सत्तर साहिबो का दूध से मुह फिर गया



मैं तेरे हाथों के सदके कैसी कंकरियां थीं वो

जिससे कितने काफिरों का दफ़अतन मुह फिर गया



अल्लाह अल्लाह ये उलूवे खास अबदियत रज़ा

के बंदा मिलने को क़रीबे हजरते कादिर गया

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